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कविता

मृत्यु-1

अनुकृति शर्मा


हम-तुम
जब झगड़ रहे थे
पर्दों के रंगों पर
शाम के खाने,
उफने दूध,
मकड़ी के जालों
रिश्तेदारों, प्यार करने की तारीखों,
सालों पहले कही बातों,
सालों पहले न कही बातों पर,
हर क्षण, अविरत
हमारे कंधों पर से
झाँक रही थी मृत्यु।
 


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