हम-तुम जब झगड़ रहे थे पर्दों के रंगों पर शाम के खाने, उफने दूध, मकड़ी के जालों रिश्तेदारों, प्यार करने की तारीखों, सालों पहले कही बातों, सालों पहले न कही बातों पर, हर क्षण, अविरत हमारे कंधों पर से झाँक रही थी मृत्यु।
हिंदी समय में अनुकृति शर्मा की रचनाएँ